Moral stories for kids in hindi- बच्चों के लिए नैतिक कहानियां।

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1. Moral stories:- तीन पहेलियां।

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में रामू नाम का एक गरीब आदमी रहता था। उसकी पत्नी के गुजर जाने के बाद वह अकेला ही अपने बेटे राजू के साथ रहता था। रामू जंगल जाता सुखी लकड़ी तोड़ता और उसे बाजार में बेच कर अपना पेट पालता। एक दिन जब रामू जंगल जाने को तैयार हुआ, तो अचानक उसे चक्कर आया और जमीन पर गिर गया। उसके बेटे राजू ने उसे उठाया और बिस्तर पर लेटा दिया। रामू को लकवा मार दिया था। अब वह बिस्तर से भी नहीं उठ पा रहा था। राजू ने बहुत सारे वैद्य और डॉक्टर को बुलाया और रामू का इलाज करवाया, पर उसे कुछ फायदा नहीं हुआ। राजू को अपने पिता की ये हालत देखी नहीं जा रही थी, तभी वह एक संत के पास गया और बोला संत जी कृपया मेरी मदद कीजिए। संत ने राजू से पूछा क्या हुआ बेटा, तुम इतने दुखी क्यों हो? राजू बोला -संत जी मेरी मां गुजर गई है और अब पिता जी की भी हालत अच्छी नहीं है, मैंने बहुत इलाज करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ, अगर मेरे पिताजी को कुछ भी हो गया तो मैं अनाथ हो जाऊंगा। ऐसा कहकर राजू रोने लगा। संत ने राजू से कहा- बेटा, अगर तुम अपने पिताजी को ठीक करना चाहते हो, तो पश्चिम दिशा में एक जंगल है।
 जंगल में जाकर तुम्हें एक जड़ी बूटी लानी होगी। उससे तुम्हारे पिताजी ठीक हो जाएंगे। राजू ने संत से पूछाा, क्या सच में ठीक हो जाएंगे? संत ने जवाब दिया हां, लेकिन जड़ी बूटी लाना इतना भी आसान नहीं क्योंकि उस जंगल में एक भयानक राक्षस रहता है। वह तुमसे कुछ पहेलिया पूछेगा, अगर तुमने उसके पहेलियों का सही जवाब दे दिया तो वह तुम्हें जड़ी-बूटी दे देगा। ऐसा सुनते ही राजू अकेला ही पश्चिम दिशा की तरफ चल पड़ा। वह जंगल सच में भयानक था। आगे चलते चलते राजू को राक्षस दिखाई दिया। राजू उसके पास गया और बोला, हे राक्षस जी, क्या आपके पास वो जादुई जड़ी बूटी है? क्या आप मुझे वो दे सकते हो? मेरे पिताजी बहुत बीमार है। यह सुनकर राक्षस ने बोला- हे बच्चे, मैं तुम्हारी हिम्मत की दाद देता हु। तुम अकेला ही मेरे पास आ गए अगर तुमने मेरे तीन पहेलियों का सही जवाब दिए तो मैं तुम्हें वो जड़ी-बूटी दे दूंगा। बोलो तैयार हो? राजू ने बोला हां मैं तैयार हूं। मैं अपने पिताजी के लिए कुछ भी कर सकता हूं।

 तभी राक्षस ने पहली पहेली पूछी- चींटी के दो आगे चींटी, चींटी के दो पीछे चींटी, बोलो कितनी चींटी? राजू ने थोड़ा सा सोचा और बोला तीन चींटी। राजू का जवाब सुन कर राक्षस बोला बहुत खूब बिल्कुल सही है।

अब राक्षस ने दूसरी पहेली पूछ- मैंने 20 को काट दिया फिर भी ना कानून तोड़ा ना खून किया। तो मैंने क्या किया? दूसरी पहेली सुनकर राजू ने सोच कर जवाब दिया नाखून काटा।  राक्षस खुश हो कर हंसने लगा और बोला यह भी बिल्कुल सही है।

अब राक्षस ने तीसरी और अंतिम पहेली पूछी-ऐसी कौन सी चीज है जो ठंडा होने पर काली, गर्म करने पर लाल और फेंकने पर सफेद हो जाती है? राजू थोड़ा सा सोच में पड़ गया। राक्षस हंसने लगा। तभी राजू झट से बोला कोयला।

राक्षस बोला- बच्चे तूने मुझे खुश कर दिया, तू सच्चा बेटा है। ये ले अपनी जड़ी-बूटी और अपने पिताजी का इलाज करा। राजू ने उसे शुक्रिया कहा और वहा से चल दिया, उसने घर आ कर तुरंत ही वो जड़ी बूटी अपने पिता को खिलाई और उसके पिता अच्छे हो गए।

सीख:- हमे अपने माता पिता के लिए जो भी संभव हो, वो करना चाहिए। चाहे उसमे लाख संकट क्यों न आए।


2. Moral story:- कर्मों का फल।

एक बार की बात है, एक गाय घास चरने के लिए जंगल में गई। शाम ढलने ही वाली थी कि उसने देखा की एक बाघ उसकी तरफ दबे पांव आ रहा था। वह डर के मारे इधर-उधर भागने लगी। वह बाघ भी गाय के पीछे दौड़ने लगा, दौड़ते दौड़ते गाय को सामने एक तालाब दिखाई दिया। घबराई हुई गाय तालाब अंदर चली गई। वह बाग भी गाय का पीछा करते हुए तालाब के अंदर चला गया। तब उसने देखा वह तालाब बहुत गहरा नहीं था उसमें पानी कम था और वह कीचड़ से भरा हुआ था। गाय और बाघ दोनो धीरे धीरे कीचड़ में धसने लगे। दोनो धसते धसते गले तक अंदर चले गए। वे दोनो हिल भी नहीं पा रहे थे। गाय के करीब होने के बावजूद भी वह बाग उसे से नहीं पकड़ पा रहा था। थोड़ी देर बाद गाय ने उस बाघ से पूंछा क्या तुम्हारा कोई गुरु या मालिक है? बाघ ने गुर्राते हुए कहा, मैं तो जंगल का राजा हूं। मेरा कोई मालिक नहीं, मै खुद ही जंगल का मालिक हूं।  गाय ने कहा, लेकिन तुम्हारी उस शक्ति का यहां पर क्या उपयोग है? बाघ ने कहा तुम भी तो फस गई हो और मरने के करीब हो, तुम्हारी भी तो हालत मेरी ही जैसी है। गाय ने मुस्कुराते हुए कहा, बिल्कुल नहीं मेरा मालिक जब शाम को घर आएगा और मुझे वहां नहीं पाएगा तो मुझे ढूंढते हुए यहां जरूर आएगा और मुझे इस कीचड़ से निकाल कर अपने घर ले जाएगा लेकिन तुम्हें कौन ले जाएगा? थोड़ी देर में सच में एक आदमी वहां पर आया और उस गाय को कीचड़ से निकालकर अपने घर ले गया, जाते समय गाय और उसका मालिक दोनों एक दूसरे को देख रहे थे। वे चाहते हुए भी उस बाग को कीचड़ से नहीं निकाल सकते थे क्योंकि उन्हें अपनी जान का खतरा था।

सीख:- दोस्तों, किसी पर निर्भर नहीं होना अच्छी बात है लेकिन मैं ही सब हूं, मुझे किसी की आवश्यकता नहीं है। यही अहंकार है और यहीं से विनाश का बीजारोपण हो जाता है। ईश्वर से बड़ा इस दुनिया में सच्चा हितैषी कोई नहीं होता क्योंकि वही अनेक रूपों में हमारी रक्षा करता है। दोस्तों, हमारी इस कहानी में गाय समर्पित हृदय का प्रतीक है, बाघ अहंकारी बल का प्रतीक है और मालिक ईश्वर का प्रतीक है। कीचड़ यह संसार है और यह संघर्ष अस्तित्व की लड़ाई है।


3. Moral stories:- कौआ और मैना की कहानी।

दोस्तों, एक बार की बात है, जाड़े का दिन था और शाम होने वाली थी। आसमान में बादल छाए हुए थे। एक नीम के पेड़ पर बहुत सारे कौवे बैठे हुए थे। वे सब बार-बार कांव-कांव कर रहे थे और एक दूसरे से लड़ झगड़ भी रहे थे। उसी समय एक मैना वहां आई और उसी पेड़ के एक डाल पर बैठ गई। मैना को देखते ही कई कौवे उस पर टूट पड़े। मैना ने कौवे से कहा बादल बहुत है इसलिए आज अंधेरा हो गया है,  मैं अपना घोंसला भी भूल गई हूं इसलिए बस आज रात के लिए मुझे यहां बैठने दो। कौवों ने कहा नहीं यह हमारा घर है तू यहां से भाग जा। इस पर मैना बोली सभी पेड़ ईश्वर ने बनाए हैं, इस सर्दी में यदि वर्षा हुई और ओले पड़े तो ईश्वर ही हमें बचा सकते हैं। मैं बहुत छोटी हूं और तुम्हारी बहन भी हूं, मुझ पर दया करो और मुझे यहां बैठने दो। कौवों ने कहा तेरी जैसी बहन हमें नहीं चाहिए। तू बहुत ईश्वर का नाम लेती है तो ईश्वर के भरोसे ही तू यहां से चली क्यों नहीं जाती? अगर तू नहीं जाएगी तो हम सब तुझे मार देंगे। कौओं को कांव-कांव करके अपनी और झपटते देख कर बिचारी मैना वहां से उड़ गई। थोड़ी दूर जाकर वह एक आम के पेड़ पर बैठ गई। रात को आंधी आई, बादल गरजे और बड़े-बड़े ओले बरसने लगे। कौवे कांव-कांव करके चिल्लाए और इधर से उधर थोड़ा बहुत उड़े परंतु ओलों की मार से सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े और बहुत से कौवे मर गए। मैना जिस आम के पेड़ पर बैठी थी, उसकी एक डाली टूट कर गिर गई। डाल टूटने से उसके जड़ के पास एक जगह हो गई। छोटी मैना उसमें घुस गई और उसे एक भी ओला नहीं लगा। सवेरा हुआ और थोड़ी देर बाद चमकीली धूप निकली, मैना उसमें से बाहर निकली और पंख फैलाकर चहकने लगी। उसने भगवान को प्रणाम किया, ओलों से घायल पढ़े हुए कौवों ने मैना को उड़ते देख कर कहा, मैना बहन तुम कहां रही थी और तुम्हें ओलों से किसने बचाया? मैना बोली, मैं आम की डाल पर अकेली बैठी थी।भगवान से प्रार्थना करती रही और भगवान ने ही मेरी मदद की।

सीख:- दोस्तों, मुसीबत में पड़े असहाय जीवों को ईश्वर के सिवाय कोई नहीं बचा सकता। जो भी ईश्वर पर विश्वास करता है और ईश्वर को याद करता है तो ईश्वर उसकी सभी आपत्ति और विपत्ति में उसकी सहायता करते हैं और उसकी रक्षा करते हैं। ईश्वर की माया निराली है। हमारी समझने में कमी हो सकती है लेकिन ईश्वर की करने में नही।


4. Moral story:- मेहनत का फल

राजकुमारी रोजी की खूबसूरती की हर जगह चर्चा थी। सुनहरी आंखें, तीखे नैन नक्श और दूध सी गोरी काया, कमर तक लहराते बाल सभी सुंदरता में चार चांद लगाते थे। एक बार की बात है, राजकुमारी रोजी को अचानक खड़े-खड़े चक्कर आ गया और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। राजवैद्य ने हर प्रकार से रोजी का इलाज किया, पर राजकुमारी रोजी को होश नहीं आ रहा था। राजा अपनी इकलौती बेटी को बहुत चाहते थे। उस देश के रजऊ नामक गांव में विलियम और जॉन नाम के दो भाई रहा करते थे। विलियम बहुत मेहनती और चुस्त था जबकि जॉन अव्वल दर्जे का आलसी था। सारा दिन खाली पड़ा हुआ बांसुरी बजाया करता था। विलियम पिता के साथ सुबह खेत पर जाता हल जोतता व अन्य कामों में हाथ बटाता। एक दिन विलियम जंगल में तोतों को आदमी की भाषा में बात करते हुए सुना। एक तोता बोला, यहां के राजा की बेटी अपना होश खो चुकी है क्या कोई इलाज है? दूसरा तोता बोला, क्यों नहीं, वो जो उत्तर दिशा में पहाड़ी पर सुनहरे फलों वाला वृक्ष है, वहां से कोई फल तोड़कर उस फल का रस राजकुमारी को पिलाएं, तो राजकुमारी ठीक हो सकती है। 

तोते ने कहा, पर ढालू पहाड़ी से ऊपर जाना तो बहुत कठिन काम है, उससे फिसल कर तो कोई बच नहीं सकता। विलियम ने घर आकर सारी बात बताई, तो जॉन जिद करने लगा की वह फल मै लाऊंगा और राजा से हीरे जेवरात लेकर आराम से बंसी बजाऊंगा। फिर जॉन अपने घर से चल दिया। मां ने रास्ते के लिए जॉन को खाना व पानी दे दिया। जॉन अपना बांसुरी बजाता पहाड़ी की ओर चल दिया। पहाड़ी के तलहटी में उसे एक बुढ़िया मिली। वह बुढ़िया जॉन से बोली, मैं बहुत भूखी हूं, मुझे कुछ खाने को दे दो।  जॉन बोला, हट बुढ़िया मैं जरूरी काम से जा रहा हूं। खाना तुझे दे दूंगा, तो मैं क्या खाऊंगा? यह बोलकर जॉन आगे चल दिया, पर पहाड़ी के ढलान पर पहुंचते ही जॉन का पांव फिसल गया और गिर कर मर गया। कई दिन जॉन का इंतजार करने के बाद विलियम घर से चला। उसके लिए भी मां ने खाना व पानी दिया। उसे भी वही बुढ़िया मिली। बुढ़िया के भोजन मांगने पर विलियम ने आधा खाना उसे दे दिया। खाना देकर विलियम आगे बढ़ गया। विलियम जब ढलान पर पहुंचा तो उसका पांव भी थोड़ा-थोड़ा फिसल रहा था। वह घास पकड़ पकड़ कर चढ़ रहा था। तभी विलियम को वहां दो तोते दिखाई दिए और उनमें से एक तोता तड़पकर उसके आगे गिर गया। विलियम को पहाड़ी चढ़ते चढ़ते प्यास लग रही थी और उसके पास थोड़ा ही पानी बचा था फिर भी उसने तोते की चोंच में पानी डाल दिया। चोंच पर पानी पढ़ते ही तोता उड़ गया और ना जाने तभी विलियम का पेड़ फिसलना रुक गया। विलियम तेजी से ऊपर पहुंचा और सुनहरे पेड़ तक पहुंच गया। उसने पेड़ से एक फल तोड़ लिया। फल को तोड़ते ही उसमें जादुई शक्ति आ गई। 

उसने आंख मूंद ली और जब आंख खोली तो स्वयं को पहाड़ी से नीचे पाया और उसके सामने वही बुढ़िया खड़ी मुस्कुरा रही थी। विलियम फल लेकर राजा के महल में पहुंचा और राजा की आज्ञा लेकर उसने फल का रस निकाल कर राजकुमारी के मुंह में डाल दिया। रस मुंह में पढ़ते ही राजकुमारी ने आंखें खोल दी। राजकुमारी बोली, हे राजकुमार तुम कौन हो? विलियम बोला, मैं कोई राजकुमार नहीं, एक गरीब किसान हूं। इतने में राजा व उसके सिपाही आ गए। राजा बोले आज से तुम राजकुमार हो, तुमने रोजी को नई जिंदगी दी है, बताओ तुम्हें क्या इनाम चाहिए? विलियम बोला, मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए, मेरे पास थोड़ी बहुत जमीन है। यदि आप मुझे 5 एकड़ जमीन दिलवा दे, तो मैं ज्यादा खेती करके आराम से रह सकूंगा। राजा बोला, सचमुच तुम मेहनती और ईमानदार हो। तभी तुमने इतना इनाम मांगा है। हम तुम्हारा विवाह अपनी बेटी राजकुमारी रोजी से करके तुम्हारा राजतिलक करना चाहते हैं। विलियम बोला, पहले मैं अपने माता पिता की आज्ञा लेना अपना फर्ज समझता हूं। राजा विलियम की मातृ पितृ भक्ति देखकर राजा गदगद हो उठा और बोला, उनसे हम स्वयं ही विवाह का आज्ञा प्राप्त करेंगे। सचमुच, तुम्हारे माता-पिता धन्य है, जो उन्होंने तुम्हारे जैसा मेहनती और होनहार पुत्र पाया है। राजा ने विलियम के पिता की आज्ञा से विलियम व रोजी का विवाह कर दिया और उसके पिता को रहने के लिए बड़ा मकान, खेती के लिए जमीन और काफी धन दिया। विलियम राजकुमारी के साथ महल में तथा उसके माता-पिता अपने बड़े वैभवशाली मकान में सुखीपूर्वक रहने लगे।



5. Moral story:- गुरु और शिष्य की कहानी

गुरु और शिष्य जंगल से होते हुए अपने गांव जा रहे थे। सूरज डूब चुका था, जिसकी वजह से काफी अंधेरा हो गया था। शिष्य अपने गुरु से कहा, गुरु जी काफी रात हो चुकी है और सूरज भी पूरी तरह से डूब चुका है, तो बेहतर यही होगा कि हम आज की रात यही आस पास के किसी गांव में गुजारे। गुरु जी मान गए और वे दोनो आस पास के किसी गांव में जा कर रुके। जैसे ही वहा गए तो गुरु जी के शिष्य ने एक घर का दरवाजा खट खटाया। जैसे ही उसने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से एक गरीब आदमी बाहर आया, तो गुरु जी ने कहा की हम गांव जा रहे थे लेकिन रात होने की वजह से हमने इसी गांव में रुकने का सोचा है। क्या हम आज रात आपके यहां रुक सकते हैं? यह सुनने के बाद उस आदमी ने गुरुजी और उसके शिष्य को अंदर बुलाया। अब जैसे ही गुरु जी घर के अंदर गए तो उन्होंने देखा कि बहुत ही ज्यादा गरीबी थी उस आदमी के घर में, तो गुरु जी ने उससे पूछा कि तुम काम क्या करते हो? तो उस आदमी ने बोला कि मेरे पास बहुत सारी जमीन है, तो गुरु जी ने बोला कि अगर तुम्हारे पास इतनी सारी जमीन है तो तुम इस तरह क्यों रह रहे हो? तो उस आदमी ने बोला कि मेरे पास जो जमीन है, वह किसी काम की नहीं। गांव वाले कहते हैं कि वह बंजर जमीन है, वहां फसल नहीं उगाई जा सकती और वहां फसल उगाना बहुत बड़ी बेवकूफी है, तो गुरु जी ने उस आदमी से पूछा की फिर तुम्हारा गुजारा कैसे होता है? तो उसने बोला कि मेरे पास एक भैंस है, उससे मेरा पूरा घर का गुजारा चलता है।यह सुनने के बाद सब सो जाते हैं। रात को जब सब सो रहे होते है, तब गुरुजी अपने शिष्य को उठाते हैं और उस गरीब आदमी की भैंस को लेकर अपने गांव चले जाते हैं। 

शिष्य अपने गुरु जी से पूछता है गुरुजी ये आप कहीं गलत तो नहीं कर रहे हैं ना? उस गरीब की रोजी रोटी इस भैंस की वजह से चलती है, तो गुरु जी अपने शिष्य की तरफ देखते हैं और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ जाते हैं। उस बात को करीब 10 साल गुजर जाते हैं और जो गुरु का शिष्य था, वह अब बहुत बड़ा गुरु बन चुका था, तो उसे उस गरीब आदमी की याद आती है कि मेरे गुरु ने उस गरीब आदमी के साथ अच्छा नहीं किया था। मुझे अब चल कर देखना चाहिए कि वह आदमी अब किस परिस्थिति में है, तो वह शिष्य उस गांव की तरफ जाता है और वहां पर जैसे ही पहुंचता है तो वह देखता है कि जिस जगह पर उस गरीब आदमी का झोपड़ा था, वहां पर एक बहुत ही आलीशान महल बन चुका था और उस झोपड़ी के बाहर जो बंजर जमीन थी, उस पर फल और फूलों के बगीचे थे। तभी उधर से उस घर का मालिक आता है। शिष्य उस आदमी को देखकर पहचान जाता है और उस आदमी से पूछता है कि तुमने मुझे पहचाना? मैं अपने गुरु जी के साथ आया था और हमने तुम्हारे यहां एक रात रुकने को कहा था। वह आदमी उसे पहचान लेता है और बोलता है कि उस रात आप कहां चले गए थे और उस रात के बाद ही मेरी भैंस कहीं चली गई थी और तब मेरे पास कोई रास्ता नहीं था और मैंने अपनी जमीन पर मेहनत की, काफी मेहनत के बाद उस पर फसल निकल आए और आज मैं इस गांव का सबसे बड़ा और सबसे अमीर आदमी बन चुका हूं। यह सुनने के बाद शिष्य की आंखों में अपने गुरु जी के लिए आंसू आ गए और उसे यह बात अब समझ आई।

सीख:- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमारे पास भी बहुत कुछ है, हमारे अंदर भी बहुत कुछ है लेकिन हमें किसी ना किसी चीज ने रोक कर रखा है। कहीं आपके पास भी तो भैंस के जैसी कोई दूसरी चीज तो नही है, जिसने आपको आगे बढ़ने से रोक कर रखा है?

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