Best Moral stories in hindi - बच्चों के लिए नैतिक कहानियां हिंदी में।

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1.Moral Story:- जिसकी लाठी उसकी भैंस।

एक गांव में नत्थू नाम का एक ग्वाला रहता था। नत्थू अपनी भैंस से बहुत प्यार करता था और भैंस से दूहे हुए दूधों को गांव-गांव घूमकर बेचता था। गांव वाले नत्थू से बहुत खुश रहते थे क्योंकि वह बहुत सरल और निर्मल था। बाकी दूध वालों की तरह वह दूध में पानी नहीं मिलता था। धीरे धीरे नत्थू के ग्राहक बढ़ने लगे। एक दिन की बात है, नत्थू सारा दूध बेच कर घर लौट रहा था, तभी रास्ते में उसे एक लड़का मिलता है और पूछता है नत्थू काका दूध मिलेगा? नत्थू ने जवाब दिया नहीं बेटा, दूध तो खत्म हो गया है। यह कह कर वह सोच में पड़ गया कि क्या करें आज कल दूध पूरा ही नहीं पड़ रहा है? हमारे ग्राहक खाली हाथ लौट रहे हैं। यह बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं है। मैं एक काम करता हूं, कल नई भैंस खरीद कर लाता हूं। नत्थू नई भैंस खरीदने बाजार पहुंचा। नत्थू बारीकी से भैंसों को देखने लगा और उसे एक काली मोटी भैंस पसंद आई। उस भैंस का नाम टुनटुन था। नत्थू व्यापारी को पैसे देकर भैंस ले लेता है। नत्थू के घर के रास्ते में एक जंगल आता है। नत्थू टुनटुन को अपने साथ ले कर जंगल से चल रहा होता है, तभी रास्ते में उसे एक आदमी मिला और नत्थू से बोला, हे दूध वाले, ये भैंस मुझे दे दो, वरना मैं तुम्हारा इस लाठी से सर फोड़ दूंगा।

 नत्थू डर गया और कुछ सोचने लगा कुछ देर सोचने के बाद अपनी भैंस उसे दे दिया। भैंस लेने के बाद वो आदमी जोर जोर से हंसने लगा और नत्थू से बोला, अरे मूर्ख, तुमने इतनी आसानी से अपनी भैंस दे दी, तुम तो बहुत डरपोक हो। अब भागो यहां से, तभी नत्थू उससे बोलता है, भैया सुनो ना, मैने आपको अपनी भैंस दे दी, पर अगर मैं खाली हाथ घर गया तो मेरी लुगाई को बिलकुल अच्छा नही लगेगा। आप अगर मुझे अपनी लाठी दे दे तो हम भी खुश आप भी खुश। आदमी सोचने लगा और बोला तुम सच में मूर्ख हो। यह लो लाठी, नत्थू उस लाठी को झट से ले लेता है। लाठी लेकर उस आदमी से बोलता है, अब हमारी भैंस हमे लौटा दो वरना हम तुम्हारी चटनी बना देंगे। उस आदमी को अपनी मूर्खता समझ आई और उसने डर के मारे उसकी भैंस लौटा दी।

2. Moral story:- दान देने का फल।

एक बार की बात है, एक भिखारी एक दिन सुबह अपने घर से बाहर भीख मांगने के लिए निकला, उस दिन त्यौहार का दिन था। उसे गांव में उसे बहुत सारी भिक्षा मिलने की समभवना थी। वो अपनी झोली में थोड़े से चावल के दाने डाल कर भीख मांगने के लिए चल दिया। चावल के दाने उसने इसलिए डाले ताकि लोगों को दिखाई दे की उसे किसी और ने भी भिक्षा दी है। उसे सामने से राजा का रथ आता हुआ दिखाई दिया, उसने सोचा आज राजा से अच्छी भीख मिल सकती है। राजा का रथ उसके पास आ कर रुक गया, उसने सोचा धन्य है, मेरा भाग्य आज तक कभी भी उसे राजा से भीख नही मिली थी क्योंकि हमेशा से ही उसे द्वारपाल उसे महल के बाहर से ही लौटा देते थे। आज राजा स्वयं ही उसके सामने आ कर रुक गया, भिखारी सोच ही रहा था के अचानक राजा उसके सामनेे आ कर खड़ा हो गया और उससे कहने लगा, आज मैं तुमसे भिक्षा मांग रहा हु। राजा ने बिखरी से कहा, आज देश पर बहुत बड़ा संकट आया है इसलिए ज्योतिषों ने कहा है की संकट से उभरने के लिए यदि मै अपना सब कुछ त्याग कर एक भिक्षुक की भाती भिक्षा ग्रहण कर के लाऊंगा तभी इसका उपाय संभव है। मुझे आज तुम पहले आदमी मिले हो इसलिए आज मैं तुमसे भिक्षा मांग रहा हु, यदि तुमने मुझे माना कर दिया तो देश का संकट टल नही पाएगा इसलिए तुम मुझे कुछ भी बिक्षा में दे दो।

 भिखारी तो सारा जीवन मांगता ही आया था कभी देने के लिए उसका हाथ उठा ही नहीं था। वह सोच में पड़ गया कि आज कैसा समय आ गया कि एक भिखारी से भीख मांगी जा रही है? बड़ी मुश्किल से भिखारी ने एक चावल का दाना निकालकर उस राजा को दे दिया। राजा वही एक चावल का दाना लेकर खुश होकर आगे बढ़ गया। सबने उस राजा को बढ़ बढ़ कर भिक्षा दी परंतु भिखारी को चावल के दाने का गम सताने लगा, जैसे तैसे वह शाम को घर आया। जैसे ही भिखारी की पत्नी ने उस भिखारी की झोली पलटी तो उस भीख के अंदर एक सोने के चावल का दाना नजर आया। भिखारी की पत्नी ने जब उस सोने के दाने के बारे में पूछा तो बिखरी बहुत तेज छाती पीट कर रोने लगा, जब उसकी पत्नी ने उससे रोने का कारण पूछा, तो उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई। उसने अपनी पत्नी से बोला तुम्हे पता है, जो हम दान देते है, वही स्वर्ण बन जाता है और जो हम इकठ्ठा कर लेते है, वो सदा के लिए मिट्टी का बन जाता है। भिखारी ने कहा मैंने सिर्फ एक ही चावल का दाना दिया था और मुझे सिर्फ एक ही दाना सोने के रूप में प्राप्त हुआ इसलिए मैं रो रहा हूं। उस दिन से उस भिखारी ने भीख मांगना छोड़ दिया और मेहनत कर के अपने परिवार का भरण पोषण करने लगा। जिसने सदा दूसरों के आगे हाथ फैला कर भीख मांगी थी, अब वही हाथ से वह दान पुण्य करने लगा। धीरे धीरे उसके भी दिन बदलने लगे और जो लोग सदा उससे दूरियां बनाया करते थे अब वो लोग उसके समीप आने लगे।

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3.Moral story:- कर्म बड़ा या भाग्य।

बहुत समय पहले की बात है, एक ज्ञान भट्ट नाम के बहुत बड़े संत थे। उनके दो शिष्य थे। एक का नाम था कर्म भट्ट और एक का नाम था भाग्य भट्ट। एक दिन कर्म भट्ट और भाग्य भट्ट के बीच बहुत बड़ी बहस छिड़ गई की कर्म बड़ा है या भाग्य?  कर्म भट्ट कर्म को बड़ा मानता था और भाग्य भट्ट भाग्य को बड़ा मानता था। उन दोनों के बीच बहस इतनी बढ़ गई कि उनको अपने गुरु के पास जाकर उसका उत्तर मांगना पड़ा। गुरु ज्ञान भट्ट ने कहा, मैं तुम दोनों को इसका उत्तर जरूर दूंगा, अगली सुबह तुम दोनों मुझे मेरी कुटिया के आगे आ कर मिलना। ऐसा कह कर गुरु ज्ञान भट ध्यान लगाने चले गए। अगले दिन सुबह होने के बाद कर्म भट्ट और भाग्य भट्ट अपने गुरु के कुटिया के आगे आकर खड़े हो गए। जब उनके गुरु अपनी कुटिया से बाहर आए तब उन्होंने अपने शिष्य को एक बहुत ही अंधेरे कमरे में बंद कर दिया। उस कमरे में रोशनी की एक किरण भी नहीं दिख रही थी 1 दिन बीता, 2 दिन बीता, उन दोनों की भूख और प्यास से हालत खराब हो गई। भाग्य भट्ट ने सोचा, जो मेरे भाग्य में लिखा है, वो तो होकर रहेगा, उसको तो मैं बदल नहीं सकता तो चलो मैं राम नाम ही जप लेता हूं। ऐसा सोच कर के भाग्य भट्ट राम नाम जपना शुरू कर दिया। मगर कर्म भट्ट को यह मंजूर नहीं था, उसने सोचा मुझे कर्म करना पड़ेगा नही तो मैं भूखा ही मर जाऊंगा। 

वह खड़ा हो गया और उसने अंधेरे कमरे में खाने पीने की तलाश शुरू कर दी, कभी उसका सर किसी चीज से टकरा जाता था तो कभी उसके पांव में चोट लग जाती थी, मगर वह थका नहीं, हारा नहीं वह उस कमरे में कुछ खाने के लिए खोजता रहा। आखिर में उसे एक मटका मिला, उसने जब उस मटके के अंदर हाथ डाला तो उसके अंदर उसे चने मिले, उन चनों को पाकर वह इतना खुश हो गया जैसे कि उसको अमृत मिल गया हो। उन चनों को बैठकर वह खाने लगा, खाते-खाते कभी कबार उसके मुंह में कंकड़ आ जाते थे तो वह उन कंकड़ों को भाग्य भट को दे दिया करता था। अगली सुबह जब उनके गुरु ने उस कमरे का दरवाजा खोलो तो कर्म भट्ट का पेट तो भरा हुआ था लेकिन बेचारे उस भाग्य भट्ट का पेट पूरी तरह खाली था। दरवाजा खोलने के कारण जब उस कमरे में रोशनी आई तो कर्म भट्ट के तो होश ही उड़ गए क्योंकि कर्म भट्ट जो भाग्य भट्ट को कंकड़ समझ कर दे रहा था वह सब कंकड़ नहीं बल्कि हीरे थे।

4. Moral story:- बुद्धिमान साधु।

बहुत समय की बात है, एक बार एक राजमहल के द्वार पर एक साधु आया और द्वारपाल से बोला कि भीतर जाकर अपने राजा से कह दो कि उनका भाई आया है। द्वारपाल ने सोचा, शायद कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई होगा, जो कि संन्यास लेकर साधुओं की तरह रह रहा होगा। उस द्वारपाल ने अंदर जाकर अपने राजा को सूचना दी। राजा ने मुस्कुराया और साधु को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया। साधु उस राजा से पूछा, कहो अनुज क्या हालचाल है तुम्हारे? राजा ने कहा, मैं ठीक हूं। आप कैसे हैं, भैया? साधु ने कहा, जिस महल में मैं रहता था, वह पुराना और जर्जर हो चुका है। वह कभी भी टूट कर गिर सकता है। मेरे 32 नौकर थे, एक-एक करके वह भी चले गए। पांचो रानी अभी बूढ़ी हो गई है और अब उनसे कोई काम भी नहीं होता। यह सुनकर राजा ने साधु को 10 सोने के सिक्के देने का आदेश दिया। साधु ने कहा, यह 10 सोने के सिक्के तो बहुत कम है, तब राजा ने बोला, इस बार राज्य में सूखा पड़ा है, आप इतने में ही संतोष कर ले।

 साधु बोला, तुम मेरे साथ सात समुंदर पार चलो, वहां सोने की खदाने हैं। मेरे पैर पढ़ते ही समुंद्र सूख जाएगा। अब राजा ने साधु को 100 सोने के सिक्के देने का आदेश दे दिया। 100 सोने के सिक्के लेकर साधु चला गया। साधु के जाने के बाद, मंत्रियों ने आश्चर्य से पूछा क्षमा करिएगा राजन, लेकिन जहां तक हम जानते हैं, आपका तो कोई बड़ा भाई नहीं है। आपने इस ठग को इतना दान क्यों दे दिया? राजा ने मंत्रियों से बोला, भाग्य के दो पहलू होते हैं, राजा और रंक। इस नाते उसने मुझे अपना भाई कहा, जर्जर महल से उसका आशय, उसके बूढ़े शरीर से था, 32 नौकर उसके दांत थे और 5 वृद्ध रानियां, उसकी पांच इंद्रियां है। समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया की राजमहल में उसका पैर रखते ही मेरा राजकोष सूख गया। मैं मात्र उसे 10 सिक्के ही दे रहा था, जबकि मेरी हैसियत तो इतनी है कि मैं उसे सोने से तौल सकता हूं इसलिए उसकी बुद्धिमानी से प्रसन्न होकर मैंने उसे 100 सिक्के ही दिए और कल से मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा।

5.Moral Story:- बीरबल की चतुराई।

दोस्तों, सुबह का समय था। बादशाह अकबर बिस्तर पर पड़े पड़े पानी मांगे जा रहे थे। आसपास उनका कोई सेवक नजर नहीं आ रहा था, पता नहीं कहां से महल के कचरा साफ करने वाले एक मामूली से नौकर ने उनकी आवाज सुन ली और वह पानी का गिलास लेकर उनके पास आ गया। बादशाह अकबर को इतनी प्यास लगी थी कि वह खुद को उसके हाथ से पानी लेने से नहीं रोक पाए तभी वहां बादशाह अकबर के खास सेवक आ गए और उन्होंने वहां से उस कचरा साफ करने वाले को निकाल दिया। दोपहर में बादशाह अकबर का पेट खराब हो गया। हकीम को बुलाया गया लेकिन फिर भी बादशाह अकबर की हालत में सुधार नहीं हुई, फिर राजवैद्य भी आए और उनके साथ ज्योतिषी भी थे। उन्होंने बादशाह अकबर से कहा, शायद आप पर किसी मनहूस व्यक्ति का साया पड़ा है इसलिए ही आपकी तबीयत खराब हुई है और ठीक नही हो पा रही है। बादशाह अकबर को तुरंत उस कचरा साफ करने वाले नौकर का ख्याल आया और उन्होंने सोचा, उसी मनुष्य के हाथ से पानी पीकर, मैं बीमार हुआ हूं। बादशाह अकबर ने गुस्से में उसे सजा-ए-मौत सुना दी, जब बीरबल को इस बात का पता चला तो बीरबल उस नौकर के पास गए और उसे दिलासा देने लगे कि वह उसे बचा लेंगे। उसके बाद बीरबल बादशाह अकबर के पास गए और उनका हालचाल पूछा, तब बादशाह अकबर ने बताया कि हमारे राज्य के सबसे मनहूस आदमी ने मुझे बीमार कर दिया। बादशाह अकबर की यह बात सुनकर बीरबल हस पड़े तब बादशाह अकबर को यह देख कर गुस्सा आया और वे बीरबल से बोले, क्या तुम मेरी यह हालत देख कर मजा ले रहे हो? 

बीरबल ने बोला, नहीं-नहीं महाराज मैं एक बात पूछना चाहता हूं अगर मैं आपको उस नौकर से बड़ा मनहूस ढूंढ कर दे दूं तो आप क्या करेंगे? क्या आप उस नौकर को सजा-ए-मौत से मुक्त कर देंगे? बादशाह अकबर ने बीरबल की बात मान ली और पूछने लगे कि अब बताओ उस नौकर से बड़ा मनहूस कौन है? बीरबल बोले उस नौकर से बड़े मनहूस तो आप खुद है। उस नौकर के हाथ से पानी पीने पर आपकी तो सिर्फ तबीयत खराब हुई है लेकिन जरा सोचिए, सुबह सुबह उसने आप की प्यास बुझाने की चक्कर में आपकी शक्ल देखी, सुबह-सुबह आपकी शक्ल देखने से उसको तो सजा ए मौत मिल गई इसलिए उस नौकर से बड़े मनहूस तो आप हुए। अब आप खुद को सजा-ए-मौत मत दीजिएगा क्योंकि हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं। बीरबल की यह चतुराई भरी बात सुनकर बादशाह अकबर बिस्तर पर पड़े पड़े ही हंस पड़े। उन्होंने उसी वक्त उस गरीब नौकर को छोड़ने का आदेश दिया और उसे इनाम भी दिया और मनहूसियत का अंधविश्वासी सुझाव देने वाले ज्योतिषी को घोड़ों का तबेला साफ करने में लगा दिया।


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