Short moral stories hindi- हिंदी में लघु नैतिक कहानियां।

 
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🔷ख़ज़ाने की खोज में चार ब्राह्मण🔷

बहुत समय पहले की बात है, किसी शहर में चार ब्राह्मण रहते थे। इन चारों में अच्छी मित्रता थी लेकिन चारों निर्धन होने की वजह से हमेशा दुखी रहते थे। गरीबी के कारण सभी लोगों से अपमान सहने की वजह से चारों ब्राह्मण शहर छोड़ कर चले जाते हैं। चारों ब्राह्मण मित्र आपस में कहने लगे कि उनके पास पैसे ना होने की वजह से उनके अपनों ने ही उन्हें छोड़ दिया। इन सब पर चर्चा करते हुए, उन्होंने विदेश जाने का फैसला किया। यह निर्णय लेने के बाद चारों ब्राह्मण यात्रा पर निकल पड़े। चलते चलते उन ब्राह्मणों को बहुत तेज प्यास लगी तो वह चारों पास ही के नदी में जाकर पानी पीने लगे। पानी पीने के बाद उन सभी ने नदी में नहाया और आगे प्रस्थान कर लिया। कुछ दूर चलने पर उन्हें एक जटाधारी योगी दिखा। ब्राह्मणों को यूं यात्रा करते हुए देखकर योगी ने उन्हें अपने आश्रम आकर थोड़ी देर आराम करने और कुछ खाने का न्योता दिया। 


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वे चारों ब्राह्मण मित्र खुश होकर, योगी के आश्रम चले गए। योगी के आश्रम में आराम करने के बाद, योगी ने उन चारों मित्रों से यात्रा करने का कारण पूछा, ब्राह्मणों ने योगी को अपनी पूरी कहानी सुना दी और कहा कि योगी महाराज गरीबों का कोई नहीं होता इसलिए हम चारों धन कमाकर बलवान बनना चाहते हैंं तो ब्राह्मणों ने उनसे धन कमाने का कोई रास्ता दिखाने का आग्रह किया। योगी के पास तप का बल था, जिसका इस्तेमाल करके उसने एक दिव्य दीपक उत्पन्न किया। योगी ने चारों ब्राह्मण मित्रों को दीपक हाथ में लेकर हिमालय पर्वत की ओर बढ़ने को कहा, योगी ने बताया हिमालय की ओर जाते हुए, यह दीपक जिस जगह गिरेगा तुम लोग वहां खुदाई करना। तुमने वहां बहुत धन मिलेगा। खुदाई के बाद, जो भी मिले उसे लेकर लौट जाना। हाथ में दीपक लेकर वे चारों ब्राह्मण मित्र योगी के कहे अनुसार हिमालय की ओर निकल पड़े। बहुत दूर निकलने के बाद एक जगह दीपक गिर गया। वहां चारों ब्राह्मणों ने खुदाई शुरू की खोदते खोदते वहां उस जमीन में तांबे की खान मिली। तांबे की खान देखकर चारों ब्राह्मण बहुत खुश हुए तभी एक ब्राह्मण ने कहा हमारी गरीबी मिटाने के लिए तांबे की खान काफी नहीं है अगर यहां तांबा है तो आगे बहुत कीमती खजाना होगा।


उस ब्राह्मण की बात सुनकर उसके साथ दो ब्राह्मण आगे बढ़ गए और एक ब्राह्मण उस खान से तांबा लेकर अपने घर चला गया। आगे चलते चलते फिर एक जगह दीपक गिर गया। वहां खुदाई करने पर उन्हें चांदी की खान मिली। चांदी की खान को देखकर तीनों ब्राह्मण बहुत खुश हुए फिर एक ब्राह्मण ने तेजी से खान से चांदी निकालने लगा तभी एक ब्राह्मण ने कहा, आगे और कीमती खान हो सकती है। यह सोच कर दो ब्राह्मण आगे की ओर निकल गए और एक ब्राह्मण चांदी के खान को लेकर घर लौट गया फिर आगे चलते चलते एक जगह दीपक गिरा, जहां सोने की खान थी। सोने की खान देखने के बाद भी ब्राह्मण के मन से लोभ खत्म नहीं हुआ। उसने दूसरे ब्राह्मण से आगे चलने को कहा लेकिन उसने मना कर दिया। गुस्से में लोभी ब्राह्मण ने कहा, पहले तांबे की खान मिली फिर चांदी की खान मिली और अब सोने की सोचो आगे और कितना कीमती खजाना होगा। लोभी ब्राह्मण की बात को अनसुना करते हुए, उस ब्राह्मण ने सोने की खान को निकाला और कहा तुम्हें आगे जाना है तो जाओ मेरे लिए यह काफी है। 


इतना कहकर वह सोना लेकर घर चला गया तभी वह लोभी ब्राह्मण दीपक हाथ में लेकर आगे की ओर बढ़ने लगा आगे का रास्ता कांटों से भरा हुआ था कांटों से भरा हुआ रास्ता खत्म होने के बाद बर्फीला रास्ता शुरू हो गया। कांटों से शरीर खून से लथपथ हो गया और बर्फ की वजह से वह ब्राह्मण ठंड से ठिठुरने लगा फिर भी अपनी जान को दांव पर डालकर वह आगे बढ़ता रहा। बहुत दूर चलने के बाद, उस लोभी ब्राह्मण को एक युवक दिखा, जिसके मस्तिष्क पर चक्र घूम रहा था। युवक के सिर पर चक्र को घूमता देख, उस लोधी ब्राह्मण को बहुत हैरानी हुई। लोभी ब्राह्मण काफी दूर तक चल चुका था इसलिए उसे प्यास भी लग रही थी उसने चक्र वाले व्यक्ति से पूछा, तुम्हारे सिर पर यह चक्र कैसा और क्यों घूम रहा है और यहां पीने के लिए पानी कहां मिलेगा? इतना पूछते ही उस व्यक्ति के सिर से चक्र निकल गया और लोभी ब्राह्मण के मस्तिष्क पर चक्र लग गया।


 लोभी ब्राह्मण दर्द से तड़पते हुए, उस युवक से पूछा, यह चक्र मेरे सिर पर क्यों लग गया? तब उस युवक ने बताया कि सालो पहले मैं भी धन के लालच में यहां तक पहुंचा था। उस समय किसी और की मस्तिष्क पर यह चक्र घूम रहा था। तुम्हारी तरह मैंने भी उससे यही सब सवाल किया, जिसकी वजह से मेरे सिर पर यह चक्र लग गया तब उस ब्राह्मण ने उस युवक से पूछा कि मुझे इससे कब मुक्ति मिलेगी? तो उस युवक ने कहा, जब तुम्हारी ही तरह कोई धन की लालच में यहां तक पहुंचेगा और चक्र को लेकर सवाल करेगा तब यह चक्र तुम्हारे सिर से निकलकर उसके मस्तिष्क पर लग जाएगा। ब्राह्मण ने कहा कि ऐसा होने में कितना समय लग सकता है? इस सवाल का जवाब देते हुए युवक ने कहा, मैं राजा राम के काल से यहां पर हूं लेकिन मुझे पता नहीं अभी कौन सा युग चल रहा है, तुम इसी से अंदाजा लगा सकते हो कि कितना समय लग सकता है? इतना बता कर वह युवक वहां से चला गया और ब्राह्मण मन ही मन बहुत दुखी हुआ और चक्र के घूमने से हो रहे दर्द से उसके आंसू निकलने लगे।

सिख:- तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच हमेशा व्यक्ति को कष्ट और मुश्किल में डाल देता है इसलिए हमें जितना मिलता है उसी में संतोष कर लेना चाहिए।



🔷कौन है असली चोर🔷


एक गांव में एक गरीब और ईमानदार किसान रहता था। वो मक्खन बना कर बाजारों बेचा करता था। मक्खन बेच कर कमाए हुए पैसों से वो एक दुकान से घरेलू सामान और ब्रेड खरीदता था। वह दुकान वाला भी कभी-कभी किसान से 1 किलो मक्खन खरीद लिया करता था। एक दिन उस दुकान वाले ने सोचा कि उसे किसान के मक्खन की जांच करनी चाहिए, जिससे दुकान वाले को यह पता चल सके कि उसे मक्खन की सही मात्रा मिल रही है या नहीं। जब दुकान वाले ने मक्खन का वजन किया तो उसने पाया कि मक्खन का वजन 1 किलो से कम था। दुकानदार इस बात से गुस्सा हो गया और उसने किसान के खिलाफ अदालत में मुकदमा दर्ज करा दी। किसान को कोर्ट में बुलाया गया। मुकदमे के दौरान न्यायाधीश ने किसान से पूछा की मक्खन का वजन करने के लिए तुम किस चीज का उपयोग करते थेे? किसान ने जवाब दिया, मालिक मैं एक गरीब किसान हूं। 


मेरे पास वजन करने के लिए तो कुछ नहीं है लेकिन मेरे पास एक तरकीब है, जिससे मैं मक्खन का वजन करता था। न्यायाधीश ने उससे पूछा क्या तरकीब है, तुम्हारे पास? किसान ने जवाब दिया कि मालिक दुकान वाले के मुझसे मक्खन खरीदने के पहले से ही मैं उससे 1 किलो ब्रेड खरीदता आ रहा हूं। हर सुबह जब मुझे मक्खन का वजन करना रहता था तो मैं एक तरफ ब्रेड और दूसरी तरफ मक्खन रख देता था।  यह सुनकर न्यायाधीश बोले, इसका मतलब अगर मक्खन ब्रेड के बराबर के वजन का होता है तो फिर जो व्यक्ति दोषी हैं, वो दुकानदार है, किसान नहीं। न्यायाधीश ने दुकानदार को तुरंत ब्रेड का वजन करने का हुक्म दिया। दुकानदार के ब्रेड का वजन किया गया तो उसका वजन 1 किलो से कम निकला। इस प्रकार दुकानदार को किसान पर लगाए गए झूठे आरोपों के लिए सजा हो गई और किसान को पूरे सम्मान के साथ जाने दिया गया।

सिख:- दोस्तों, इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की ईमानदारी हमसे कुछ नहीं लेती लेकिन झूठ आपसे बहुत कुछ ले सकता है।



🔷पिता का कर्जा कौन देगा🔷


बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक भले आदमी गंगाराम का देहांत हो गया था तो जैसे ही गंगाराम परिवार वाले उसकी अर्थी को श्मशान ले जाने लगेे तभी अचानक एक सेठ ने उस अर्थी का पांव पकड़ लिया और बोला कि मरने वाले इस गंगाराम से मैं अपने 2 लाख रुपए कर्जा मांगने आया हूं। अगर मुझे मेरे पैसे वापस नहीं मिले तो मैं इसकी अर्थी को शमशान नहीं जाने दूंगा सभी लोग तमाशा देखने लगेे तभी उसके तीन बेटों ने कहाा, हम तुम्हारा कर्जा नहीं देंगे। पिताजी का कर्जा पिताजी जाने और वैसे भी अब वह इस दुनिया में नहीं हैं अगर तुम्हें इनकी अर्थी ले जानी है तो ले जाओ। यह सुनकर पूरा गांव गंगाराम के तीनों बेटों पर थू थू करने लगा। गंगाराम के तीन बेटे ने कर्जा देने से मना कर दिया तभी गंगाराम के भाइयों ने भी कह दिया, जब बेटा अपने बाप का कर्जा नहीं दे सकते तो हम क्यों किसी का कर्जा भरेे। गंगाराम की अर्थी को वहां रुके बहुत देर हो गई थी तभी यह बात गंगाराम की इकलौती बेटी तक पहुंची तो वो भागी भागी अपने पिताजी की अर्थी तक पहुंची तभी उसने देखा कि उसके पिता की अर्थी का एक पांव किसी सेठ ने पकड़ रखा है तभी उसने अपना सारा जेवर और उसके पास जितने भी पैसे थेे, उस सेठ को दे दिए और फिर उस सेठ के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा की सेठ जी अगर ये जेवर बेच कर भी आपका कर्जा पूरा न हो पाए तो मैं खुद आपका कर्जा चुकाऊंगी मगर इस समय मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को मत रोको तभी सेठ ने उसकी बेटी से बोला, मुझे माफ़ कर दो, बेटी।


 दरअसल, बात ये है की मुझे गंगाराम से 2 लाख रुपए लेने नहीं बल्कि देने है। गंगाराम ने 3 साल पहले मेरी कुछ मजबूरी पड़ने पर अपनी एक जमीन बेच कर मुझे 2 लाख रुपए दिए थे और गंगाराम तो इतना भला था की मुझसे एक रुपया ब्याज भी नहीं लिया और आज जब मैंं गंगाराम के रुपए लौटाने आया हु तो उनका देहांत हो गया इसलिए मैं बड़ी सोच में पड़ गया था की अब मैं ये रुपए किसको दूं? इसलिए मैंने यह खेल खेला ताकि गंगाराम जी के ये 2 लाख रुपए घर के ऐसे सदस्य के पास जाएंं जो वाकई में उनसे प्यार करता हो, उनकी इज्जत करता हो और बेटी आज तुमने यह साबित कर दिया कि अपने मां-बाप को एक बेटे से ज्यादा एक बेटी ही प्यार करती हैै इसलिए ये 2 लाख रुपए मैं तुम्हें सौंपता हूं। काश तुम्हारी जैसी बेटी हर घर में हो जो अपने पिता से इतना प्यार करती है। यह सब देख कर गंगाराम का भाई और बेटे का सिर शर्म से नीचे झुक गया।

धन्यवाद!

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